December 25, 2010

बड़ा दिन

सुनो दोस्तों इक नई सी खबर है, की आज से दिन बड़ा हो रहा है
खोया - खोया सा अब शामो सहर है, की आज से दिन बड़ा हो रहा है

मोटी परत ठंढ की है आने वाली, कोहरा फ़ज़ाओं में है छानेवाली
जो भी है ये सब शरद का असर है, की आज से दिन बड़ा हो रहा है

 सर्द हवाओं के झोंके चलेंगे , अब तेल से दादा तलबे मलेंगे
दादी हमारी कहेगी कहर है , की आज से दिन बड़ा हो रहा है

पहनने पड़ेंगे अब स्वेटर पर स्वेटर , बैठेगी मम्मी कांटा-ऊन लेकर
इसी काम में बितनी दो पहर है , की आज से दिन बड़ा हो रहा है

अब हर जगह पर जलेंगी अलावें , किये जायेंगे कई तरह के उपाएँ
मानव तो मानव पशुओं को भी डर है, की आज से दिन बड़ा हो रहा है

कहने को तो कहते हैं ठण्ड सजा है , मगर इसका अपना अलग ही मज़ा है
अब देर तक सोने का अवसर है , की आज से दिन बड़ा हो रहा है

चाय और कॉफ़ी की चुस्की लगते, चद्दर लिहाफो में छुपते छुपाते
सबकी नज़र होनी आराम पर है , की आज से दिन बड़ा हो रहा है

December 22, 2010

दावत

है पलेटें हाथ में , दोस्तों के साथ में
                 लग रहीं कतार है , दावतों की बहार है

भुख्खरों की भीड़ है पा ले  जो वो वीर  है
                  पाने की तकरार है, दावतों की बहार है

सामने पकवान है , होठों पे मुस्कान है
                    पेट की पुकार है , दावतों की बहार है

खाना है या खेल है , लोग ठेलमठेल है
                    चम्मचों पे भी मार है , दावतों की बहार है

दोस्त दुश्मन लग राहे , शैतान मन के जग रहें
                     सब बने खूंखार है, दावतों की बहार है

सूट  टाई बूट में , सब लगे हैं लूट में
                     ये अजब व्यवहार है, दावतों की बहार है

मिठाइयाँ है रस भरी पनीर प्लेटों में भरी
                    टपका राही ये लार है, दावतों की बहार है

फास्ट फ़ूड की ठाठ है , गोल - गप्पे चाट है
                    बनी सलाद श्रींगार है , दावतों की बहार है

तरह- तरह की डिस सजी , चिक्केन - मटन , फिश सजी
                  हॉट सूप भी तैयार है , दावतों की बहार है

चाय - कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स , प्यास बढाती आईस - क्रीम्स
                   खट्टी-खट्टी डकार है, दावतों की बहार है
                   

December 18, 2010

किताबों की दुनियां

बड़ी ही हँसी मैं किताबों की दुनियां , सभी रंग खुद में समाए हुए हूँ
जुबां से नहीं जो कही जा सकी है   ,  कई  राज  ऐसे  छुपाये  हुए हूँ

पोरस से लेकर सिकंदर की बाते , बाहर की बाते या अंदर की बातें 
बड़े शौख से अपने पन्नों के नीचे , हर इक हकीकत दबाए हुए हूँ

राजा रानी और सिंहासन के झगड़े , प्रजा भुखमरी और राशन के झगड़े ,
खुशी में भी मैंने मनाई है खुशियाँ  ,  और गम में आंसू  बहाए हुए हूँ

माना की कहती है नानी कहानी  ,  मैं रखती हूँ उससे पुरानी कहानी
सदियों पुरानी ख्यालों से आगे  ,  तिलस्मी एय्यारी सुनाए हुए हूँ

मानव के मन की तहें मैंने खोली , नही जो वो बोला वो बातें भी बोली
क्या सोंचता है कोई अपने दिल में , वो जज्बात भी मैं  बताए हुए हूँ

लैला और मजनूं के वादे और कसमें , तोड़ी जो हीर और राँझा ने रस्में
जमाने के संग-संग मै भी जली हूँ , और प्यार उनका जलाए हुए हूँ

वेदों - पुरानों और ग्रंथों की ढेरी , संतों और गुनियों की बातें बहुतेरी
रंगे - बिरंगे  अनोखे - अजूबे  ,  कई चित्र खुद पे बनाए हुए हूँ

मैंने समेटे हैं  हर ज्ञान खुद में  , गृह ज्ञान से लेके विज्ञान खुद में
लाखों हजारो को मैं अपने दम पे , सफलताओं का रस चखाए हुए हूँ

बिगरे सहजादो को मैंने संवारा , पतितो को पावन बनाके उबारा
माने ना माने जमाना ये बातें ,    कई बार दम मैं दिखाए हुए हूँ

मैं हूँ कलाओं को कब से संजोये , सुर ताल लय को हूँ खुद में पिरोये
नहीं दे सकी साथ जिनका ये दुनिया , मैं साथ उनका निभाए हुए हूँ

खोते रहे कई दिन रैन मुझमें ,    पाते रहे सब सुख चैन मुझमें 
हारे हुए  को भी देके दिलासा  ,  आँखों में तारे चमकाए हुए हूँ

मगर अब जमाना बदलने लगा हैं, कई और के रंग में ढलने लगा हैं
कभी ना कभी लौटेंगे मेरे अपने ,     मैं आस अब भी लगाये हुए हूँ

December 8, 2010

आलसीनामा

दिन रात करूँ सुबह शाम करूँ , जब जी चाहे आराम करूँ
बीते ऐसे  ही  अब  जीवन  ,  जी करता ना कोई काम करूँ

ये भाग दौड़ है क्यूँ करना , इस उलझन में है क्यूँ पड़ना
इन जोड़-तोड़ से क्या होगा , आखिर तो इक दिन है मरना

जाने  सब  क्यूँ  बेचैन  रहे , सपनों  में  खोये  नैन  रहे
ये जीना भी कोई जीना है , ना नींद रहे ना चैन रहे

जो  होना  है  वो  होता  है , कोई पाता है कोई खोता है
कोई पत्थर से सर फोड़ रहा , कोई तान के चादर सोता है

दुनिया  मारे  हमको  ताने , आये हमे अपनी समझाने
पर पक्के हम अपनी धुन के , हम तो अपनी मन की माने                  

जो  होता  है  वो  हो  बेकल  , हमको न गंवाने है ये पल
हम आज में जीने वाले हैं , देखेंगे  जो  होना  हो  कल

है अपने लिए हरपल हरक्षण , है ऐसो आराम भरा जीवन
परवाह नहीं करनी हमको , चाहे कहे जहाँ इसे आलसपन 

November 28, 2010

जिन्दगी

तेरी जिन्दगी हो या हो मेरी जिन्दगी
                                            दिखती है सरल होती है पर टेढ़ी जिन्दगी
सुलझा सका न कोई जिन्दगी का फलसफा
                                            है उलझनों मुसीबतों की  ढेरी जिन्दगी

हर रोज सिखाती है नये ढंग  जिन्दगी,
                                           चलती है सुख और दुःख के संग जिन्दगी
कहने को है जहाँ में कई जानकार पर ,
                                           ना जाने कोई कब बदल ले रंग जिन्दगी

देती है जिन्दगी में कई नाम जिन्दगी ,
                                          कई खास तो होती है कई आम जिन्दगी
बढती है जितनी उतनी ही घटती है पलपल
                                         ऐसे ही हुई जाती है तमाम जिन्दगी

कभी दर्द कभी गम है कभी प्यार जिन्दगी ,
                                         कभी जीत मयस्सर तो कभी हार जिन्दगी
हर एक जिन्दगी का है वजूद  जहाँ में ,
                                         होती नही कभी कोई बेकार जिन्दगी

ना जाने किसने कब कहाँ बनाई जिन्दगी ,
                                         पा के भी ना ये जाना कि कब पाई जिन्दगी
जितना भी जिए जीने कि चाहत नही गई ,
                                         कुछ और कि उम्मीद पे ललचाई जिन्दगी

है तंगहाल सी हुई हर एक जिन्दगी ,
                                       लगती है सदा दूसरों कि नेक जिन्दगी
कहने को तो इन्सान बड़ा खुशमिजाज है
                                       जलता है मगर दूसरों कि देख जिन्दगी

देती है साथ उम्रभर है मीत जिन्दगी ,
                                      गाए अगर इसे तो बने गीत जिन्दगी
है सोचना हमें कि जिए इसको किस तरह ,
                                     हर मोड़ पे सिखलाती नई रीत जिन्दगी

लाती है कैसे - कैसे अजब मोड़ जिन्दगी ,
                                    देती है हौसलों को कभी तोड़ जिन्दगी
हम जिन्दगी का साथ देते रहें सदा ,
                                    देती है एक दिन साथ छोड़ जिन्दगी

October 28, 2010

आँखें

कुछ काली सी कुछ भूरी सी , कुछ होती हैं नीली आँखें
कुछ आघातों से सुनी सी , कुछ हर्षित चमकीली आँखें

कई उभरी सी और बड़ी-बड़ी , कई धंसी हुई डूबी आँखें
कई राग-रंग में फँसी हुई , कुछ तंगहाल उबी  आँखें

पलकों के नीचे छुपी हुई , दुनिया को दिखलाती आँखें
कुछ डरी-डरी सी सहमी सी , बचपन की घबराती आँखें

कुछ पाने पे कुछ खोने पे , हो जाती है गीली आँखें
यौवन का आना और होना , सपनों से रंगीली आँखें

बिछुडों से मिलने का वो सुख , खुशियों से भरी खिली आँखें
गिरती उठती मिलती छुपती , दुल्हन की शर्मीली आँखें

कभी हार जीत में फँसी हुई , बेसब्री  में  उलझी  आँखे
कई आशा और निराशा में , बोझिल सी बुझी-बुझी आँखे

वो इंतजार में अपनों की , इकटक राहें तकती आँखें
हो सूनापन और तन्हाई , और रातों को जगती आँखे

यादों में अपने सजना की , सजनी की है खोई आँखें
है राज ये लाली खोल रही , की रातों को रोई आँखें

वो लाचारी और झुरियों में , अंतिम घड़ियाँ गिनती आँखें
बीते  लम्हों  के  साये  से , कुछ प्यारे पल बिनती आँखें  

है नूर भी ये मगरूर भी ये , है नाज भरी कातिल आँखें
लाखों पहरों के आगे भी , लेती - देती  है  दिल  आँखें

जो बोल नहीं पाते ये लब , वो बातें भी कहती आँखें
सब भूल भी जाये कोई पर , है याद सदा रहती आँखें

October 26, 2010

कहाँ है

वो चैन इत्मिनान और सुकून कहाँ है
जो चाहिए जीने को वो जूनून कहाँ है 
ना जाने कहाँ हो गये शिकस्त हौसले 
जो खौलता था बेधरक वो खून कहाँ है

सच के लिए उठने को अब आवाज कहाँ है
वो स्वाभिमान देशभक्ति  नाज कहाँ है
है अपने - अपने गम से यहाँ त्रस्त हर कोई
गमगीं है जहाँ कोई खुश मिजाज  कहाँ है

बादल को अब  बूंदों पे इख़्तियार कहाँ है
सागर को भी लहरों पे ऐतवार कहाँ है
हार शै नशीब है हुआ ऐशो आराम का
पर दिल को एक पल को भी करार कहाँ है

ऊँगली उठी कई बार की भगवान कहाँ है
वो सच्ची और प्यारी सी मुस्कान कहाँ है
झाँका नही कभी भी गिरेबान  में अपने
जो प् सके रब को तू वो इन्सान कहाँ है

October 22, 2010

दिल्ली फँसी घोटालों में

बनते  बिगड़ते  बवालों  में , नेताओं  के  चालों  में
दुनिया भर के सवालों में , दिल्ली फँसी घोटालों में

कॉमनवेल्थ की आड़ में , कॉंग्रेस की सरकार में
कलमाडी  की  वार  में  , दिल्ली दबी बेकार में

खेलों  की  तैयारी  में  , वक्त  की  मारामारी  में
लालच  की  बीमारी  में , दिल्ली गई लाचारी में

भारत माँ के आनों पे , मक्कारी भरे बहनों पे
ताले लगे जुबानों पे , दिल्ली के मुस्कानों पे

जनता थी भोलेपन में , मैल भरा उनके मन में
लगे खेलने वो धन में , दिल्ली के ही आँगन में

अरबों में और खरबों में , नेताओं के तलबों में
रंग – बिरंगे जलबो में , दिल्ली खरी है मलबों में

आँखों में आंसू भरके , कितनों को बेघर कर के
खेला किये वो बढ़ – बढ़ के, दिल्ली चुप हुई डरके

रही खबर बस कानों में , हँसते गाते मेहमानों में
टेबल – कुर्सी खानों में , दिल्ली सजी दुकानों में

झूट दबे सच बोला जाये, देशभक्ति रस घोला जाये
बेईमानों को तोला जाये , दिल्ली अब मुँह खोला जाये

October 20, 2010

बचपन

ऐ काश  की  फिर  लौटा  पाते , जो  बीत  गया  है  वो  जीवन
कितना प्यारा कितना सुंदर , कितना न्यारा था वो बचपन

वो  गलियाँ  और  वो  चौराहा , चलना  पगडंडी  मेड़ों  पे
अमरुद  लीची  या  आम  लदे , वो चढना उतरना पेड़ों पे

वो  विद्यालय  जिसमें  हमने  , का-का की-की पढना सिखा
वो  इंक  दवात  की  स्याही  से , जीवन में रंग भरना सिखा

कभी खेल-खेल के चक्कर में , अपनी कुछ चीजे खो देना
खुद  से  ही  गलती  करना  ,  और मार के डर से रो देना

गिल्ली-डंडे  और  कंचों  में , खाने की सुध बुध ना रहना
सुनकर भी अनसुनी करना , अपनी अम्मा का हर कहना

वो हार पे अपनी चिल्लाना , और जीत पे अपनी इतराना
इक-इक दावों पे दम भरना , हर एक  चाल  पे  मुस्काना

लेते  ही  किताबें  हाथों  में , निंदिया  रानी  का  आ  जाना
घंटों तक बाबू जी का फिर , वो ज्ञान की महिमा समझाना

लोभ  में  पड़के  मिठाई  की , अपने  घर  में  चोरी  करना
पूछे जाने पर  चुप  रहना , और गालों पर थप्पड़ का पड़ना

आवाज दोस्तों की सुनकर , वो  खड़ा  कान  का  हो  जाना
घर में चुपके-चुपके चलना , फिर  दौड़  गली  में  खो  जाना

छुपके  दादा  के  चश्मे  से , वो  देखना  दुनिया  बड़ी-बड़ी
दिन त्योहारों पकवानों का , और भूख का लगना घड़ी-घड़ी

आना  घर  पे  मेहमानों  का , कुछ  पाने  को  जी  ललचाना
फिर छोड़ के नटखटपन अपना , भोला-भाला  सा  बन  जाना

वो  हाथ  पकड़  के  भैया  का , हर  रोज  बजारों  में  जाना
हर चीज देखकर जिद करना , और बात पे अपनी अड़ जाना

चढके  चाचा  के  कन्धों  पे , उनकी   मुछों   को   सहलाना
कह-कह के कहानी परियों की , दीदी का दिल को बहलाना

वो रेत में पांव घुसाकर के , इक  सुंदर  महल  बना  लेना
इक नाव बनाना बारिश में , और मार के डंडा चला लेना

घनघोर  घटा  के  छाने  पर , वो  होके  मगन  नांचा  करना
तूफां  में  करना  कूद -फांद  , और आँख में मिटटी का भरना

कच्चे  अमिया  का  खट्टापन , और  पानी  मुंह  में  आ  जाना
फिरना दिन-दिन भर बागों में , और विद्यालय में ना जाना

वो  कान  पकड़  मुर्गा  बनना , घंटों  उठक - बैठक  करना
पलभर करना अफसोस मगर , घंटों तक आंसू का झरना

संगी - साथी  और  हमजोली , रगडा - झगडा गुस्सा अनबन
खट्टी - मिट्ठी बातों वाली , कई यादे छोड़ गया बचपन



October 18, 2010

अस्तित्व

देकर  इक पिंजरा  सोने  का  , उड़ान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

टकराकर  रोज  किनारों  से , लहरों  ने  रोना  सीख  लिया
जख्मों  का  पीब  बना  जैसे , आंसूं  से  धोना  सीख  लिया 

इक आह की लौ जो जलती थी ,वो वक्त के आगे नही टिकी
इक खुशी कभी जो दिखती थी , ना जाने फिर क्यूँ नही दिखी

इस  डर  से  ना  मुस्काए की , मुस्कान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

पिसते जीवन की चक्की में  , तपतें  चूल्हों  की भट्टी  में
दुनिया  की  खातिरदारी  में , अब रक्त बचा ना पुट्ठी में

गम खा-खा कर भी गुमसुम है , आंसू पी के भी मौन हैं ये
है शब्द  मगर  निः शब्द  खड़े  , ना जाने भी की कौन हैं ये

कभी बेटी कभी बहु कहकर  ,  पहचान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

मेरे   भी   सपने   फूटेंगे   , अंकुर  का  ऐसा  दावा  है
धीरे - धीरे  चिंगारी  को  , बनना  ही  इकदिन लावा है                 

इक  हाहाकार  उठेगी  जब , तब  तुंफा  और  प्रलय  होगा
फिर से इस सारी सृष्टि पर , ममता और प्यार का जय होगा

टूटी - फूटी - झूटी  ही सहीं ,  अरमान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

October 11, 2010

जमाना बुरा है

मैं  भी  भली  हूँ  और  तू  भी  भला  है , फिर क्यूँ  कह रहे  हो  जमाना  बुरा है

जो  हम तुम  निभाते रहे कसमें -वादे  , क्यों  हो  बेवफाई  ये  धोखा  कहाँ  है                                              
                                                                                               
जमाने  को  मुजरिम  कहे  जा  रहे हो , जमाना  तो  हमसे और तुमसे  बना  है
हम  में  से   ही  कोई   गद्दार   होगा   ,  जमाना  बेचारा  बेवजह  पीस  रहा  है

बुरे  पे   अच्छाई  का  पानी   चढ़ाके   , दमकता  चमकता  हर  इक  चेहरा   है
मिलावट  की  इतनी  बुरी लत  पड़ी है , है  ईमान  कम  ज्यादा  धोखा  भरा  है

छुपाते  रहे  अपनी  कमजोरियां   हम  , जमाने  को  हम  ने  बुरा  कह  दिया  है
हमें  है  पता  वो  न  शिकवा   करेगा  ,  तभी  नाम  बदनाम  उसका   किया   है

जो झाँका किये एकदिन दिल के अंदर , तो  देखा  की  भगवान  सोया  पड़ा   है
जगाया  बहुत उनको पर  वो  न जागे , हुई  ये  खबर  की  वो  हमसे  खफा   है

ये पूछा जब हमने बताओ बस इतना  , भला  हमसे  ऐसी  हुई  क्या  खता   है
वो  कहने  लगे  पूजते  तुम  मुझे  हो , मगर  तुझमे  आदत  सब शैतान का है

बनाया  है  मैंने  ही  सबको  जहाँ  में , मगर  सब  मुझे  ही  बनाने  लगा  है
समझने  लगा है बड़ा खुद को मुझसे , मेरी  रहमतों  को  भुलाने   लगा  है 

वाकिफ  हूँ  मैं  तेरी  हर एक नस से , नासमझ फिर भी मुझसे छुपाने लगा है
करता है कम और दिखता है ज्यादा , बहुत  दूर  मुझसे   तू   जाने  लगा  है

बदल अपनी आदत बना पाक दिलको , मिटा दे भरम वो जो तुझमें  भरा  है
संभलने  का  तू  आज  संकल्प  करले , भुला  दूंगा  मैं भूल मेरा दिल बड़ा है

मतलब - परस्ती  फरेबी  में  पड़  के  , खुद  को  ही  धोखा दिए  जा रहा  है
बुराई  को  अपनी  मिटाता  नहीं   है   , कहता  है  सबको  जमाना  बुरा  है

October 10, 2010

गजल

अब  तलक  जो सपना  रहा ,  काश  वो  सच  होता  सनम


उम्रभर  को  ना  सहीं  ,  पल  दो  पल  के  ही लिए
मैं तेरी जुल्फों के नीचे ,  चैन  से   सोता   सनम

दिल में हूँ कब से दबाये , दर्द  का  इक  जलजला
चाहूँ  लग  तेरे  गले  से , फुटकर   रोता  सनम

सोंचा था आबाद  होंगे , हम  तुम्हारे  इश्क  से
तुने  सबकुछ  ले लिया , पास मेरे जो था सनम

तू अगर लौटा जो देता , दिल मेरा बस एकबार   
फिर कभी मैं राहेवफा में , दिल नहीं खोता सनम

कसमें वादे याद आते , तुझको भी जब बेपनाह                                 
तू भी अपने पाप दिल के , आंसूओ से धोता सनम

मार के मेरी शख्सियत को , तू बना है बेगुनाह
फिर  रहा  हूँ  दरबदर मैं , लाश को ढ़ोता सनम

October 9, 2010

दोस्ती

हैं मिलते रहे हाथ से हाथ अब तक ,
                                              कभी दिल से दिल भी मिला करके देखो
नहीं गर मुहब्बत हो मुझसे ओ यारा ,
                                              तो शिकवे शिकायत  गिला करके  देखो
है बनते हुए को तो  सब  ने  बनाया ,
                                             कभी  काम  बिगड़ा  बना   करके  देखो
भागा करोगे  तबाही  से  कब  तक ,
                                             कभी  जश्ने गम भी  मना  करके  देखो
दिलाउँ  तुम्हें किस तरह मैं भरोसा ,
                                             भरम अपने दिल का दफा  करके  देखो
अभी तक तो अपने लिए ही जिए तुम ,
                                            कभी  मेरी खातिर  वफा   करके    देखो
मिलेंगे  कभी  तो  किसी राह पर  हम ,
                                            हँसी   सपने   ऐसे   सजा   करके   देखो
दफन है जो दिल में वो यादों का मौसम ,
                                           जो  तन्हा  रहो  तो  जगा   करके   देखो
छोडो  भी  अब  तुम  बहाने  बनाना ,
                                           नहीं  आ  सको   तो  बुला   करके  देखो
खिलातें  रहें फूल गमले में अब तक ,
                                          कभी  फूल  दिल  में  खिला  करके  देखो
तुम्हें हो रही फिक्र क्यूँ  बेवजह  की ,
                                          मेरी   दोस्ती   आजमां    करके      देखो
नहीं  दिल्लगी है ये  ओरों के  जैसी ,
                                          है  सोना खड़ा  ये   तपा   करके      देखो

October 8, 2010

उलझन

मैं  भी  रोया  तू भी रोई , पर  रोने  से क्या होता है
मैं  तेरा  हूँ  तू  मेरी  है  , जुदा  होने से  क्या होता हैं

है कौन भला इस दुनिया में , जिसको न कोई गम होता है
जाने से दूर सनम से भी , ये प्यार कहाँ कम होता है

जकड़े जाते हैं तन लेकिन , मन बांध कहाँ कोई पाता है
जब आँख देखती है सपने , मन का पंछी उड़ जाता है

दुनिया को नही मंजूर है ये , कोई प्यार भरा अफसाना हो
चाहे जितने भी हो दुश्मन , पर ना कोई दीवाना हो

मिलती हैं सजाएं उल्फत में , पत्थर बरसाए जाते हैं
ऐ यारा कर्ज मुहब्त में , ऐसे ही चुकाए  जाते है

फिर उठेंगी ऊँची दिवारे , लाखों फतवे जारी होंगे
जिसे देख कयामत रोएगी , वो सितम ऐसे भारी होंगे

ममता देने वाली आँचल , बिल्कुल छोटी पर जायगी
खुशियाँ देने वाली आँखे , गम आँखों में भर जायगी

टूटेंगे जब दो दिल तबही, इस दुनिया को राहत होगी
महफिल में नफरतवालों के , फिर से रुसवा चाहत होगी

इस प्रेम डगर में दीवानी  ,  इक मंजिल है दो राहें है
उस ओर जमाने की रौनक , इस ओर दर्द और आहें है 

काँटों से भरे इन राहों पे , चल पाना बड़ा मुश्किल होगा
दम निकलेगा अरमानों का , छलनी-छलनी ये दिल होगा  

 ऐसा ना हो आगे बढके , फिर से पीछे मुडजाना  हो
चलने से पहले सोंच जरा , ना की पीछे पछताना हो

अच्छा होगा तू सुलझाले ,अपनी उमीदों की उलझन 
ऐसा ना हो तेरे कारण  , जख्मी हो मेरा दिवानापन

ये सौदा दिलों का होता है , ये खेल बड़ा ही मुश्किल है
तेरे पास जमाने की दौलत , मेरे पास तो बस मेरा दिल है

हर गम दुनिया के सह लेगा , ये गम ना दिल सह पायेगा
मैं रोक न पाउंगा दिल को , दर्दे गम में बह  जायगा

इस दम ही मुझको भूल के तू , कोई ढूंढ़ ले नये बहाने को
या तो दे वफाओं की रौनक , या मार दे फिर दीवाने को

क्या खोना है क्या पाना है , जो करना है इस दम कर ले
अपनाले या फिर ठुकरादे , अपनी उलझन  को कम कर ले

October 6, 2010

तो हम क्या करें - ''गजल ''

बनते- बनते रह गई जो , बात तो हम क्या करें
दे  सके ना  उम्रभर  वो  , साथ तो हम क्या करें

कर गये थे मिलने  का , वादा सनम मुझसे मगर
 रह गई आधी  अगर  , मुलाकात तो हम क्या करें

जल गया जो हसरतों की , आग में ये तन बदन
आये उसके  बाद जो  ,  बरसात तो हम क्या करें'

 आरजू  हमने भी की थी , रौशनी के  साये  की
आ  गई  काली  अँधेरी  ,  रात तो हम क्या करें

हाथों  में मेंहदी  रचाए , रह  गये हम  देखते
वो न  आया ले के  जो , बारात तो हम क्या करें

जश्न होता महफिल होती , गूंजती शहनाइयां
दे गया पर यार गम  ,  सौगात तो हम क्या करें

ये इश्क क्या है - "गजल"

ये आँखें क्या है इक आईना हैं
                                      है इसमें तस्वीर सनम की
ये इश्क क्या है इक जलजला है
                                    आगाज है आनेवाले  गम की
ये जख्म क्या है इक तोहफा है
                                   निशानियाँ हैं उनके करम की
ये दर्द क्या है चिंगारियां है
                                  ये है जलन किस्मत के सितम की
जूनून क्या है नादानियाँ है                                                                              
                                  आहट है बर्बादियों के कदम की
ये खाब क्या है इक आसरा है
                                 ये है झरोंखा मन के भरम की

शायरी

ये गम नहीं की गैरों ने कस्ती है डुबोई
हैं गम मुझे अपने खड़े तमाशबीन  थे
रह-रह के मुझको दर्द ये बेचैन करता हैं                                                           
मेरे खाब से भी ज्यादा उसके सच हसीन थे

ऐ हंसी तू सब हसीनों से जुदा लगती है
मेरी इबादत मुझे तू मेरा खुदा लगती है
मैं हूँ बीमारे दिल तेरी  मुहब्बत  में
तू मुझे मेरे दर्दे दिल की दवा लगता है

तेरी जुल्फों की घटा में मुझे खोने तो दे
हैं तेरा प्यार समंदर ये दिल डुबोने तो दे
अगर तू दे नहीं सकता मुझे कुछ भी ऐ सनम
अपने कांधे पे रखके सर मुझे रोने तो दे

कभी जिन्दगी में ऐसे भी मोड़ आते हैं
अपने साये भी अपना साथ छोड़ जाते हैं
कुछ को खुदा की रहमत उबार लेती  हैं
कुछ को ये वक्त के तूफान तोड़ जाते हैं

खुदा का वास्ता मुझको मेरे सनम मत दे
जिसे निभा न सकूं मैं ऐसी  कसम  मत दे
न दे सके तू ख़ुशी जो तो कोइ बात  नही
कर रहम इतना सा मुझपे की अपने गम मत दे

October 5, 2010

मुझको भूल न पाओगे

ठंढी हवा जब डोलेगी , कोयल कुहू बोलेगी
यादों में खो जाओगे , मुझको भूल न पाओगे

साथ कभी जब हम तुम थे , खुशियों की धुन में गुम थे
कैसे  वो  बिसराओगे ,  मुझको  भूल  न  पाओगे 

आँखें गम से नम होंगे , फिर भी दर्द न कम होंगे
अपने  पे  पछताओगे ,  मुझको भूल  न पाओगे

आह उठेगी सीने में  ,  मुश्किल होगी जीने में
चाहे कहीं भी जाओगे , मुझको भूल न पाओगे

 सहलाओगे दिल अपना , जोड़ोगे टूटा सपना
ऐसे  जी  बहलाओगे   ,    मुझको भूल  न पाओगे

तड़पोगे मुझे पाने को , फिर से प्यार जताने को
सपने नये सजाओगे  , मुझको भूल  न पाओगे

किस्मत में ही रोना था , हुआ वही जो होना था
यूँ खुद को समझाओगे , मुझको भूल  न पाओगे

दिल के कोने कोने में , यादें मेरी संजोने  में
सारी उमर बिताओगे , मुझको भूल  न पाओगे

October 4, 2010

जज्बात

आंसू
नहीं बहते अब आँखों से
क्योंकी इसकी भाषा सबको पढनी नहीं आती
सच
अब बोलना हुआ मुश्किल
क्योंकि झूठ सबको पकड़नी नहीं आती
दर्द
दबाएँ हुए  हैं दिलों में
क्योकि ये बात सबको बताई नहीं जाती
गम
दोस्त बना हैं जबसे
किसी और से यारी निभाई नहीं जाती
ख़ामोशी                                                                               
 पसंद हैं मुझे
क्योंकि ये बहुत कुछ कहा करती हैं
जिंदगी
क्यूँ है इतनी बेपरवाह
न चाहकर भी सबकुछ सहा करती हैं 

कुछ अलग कुछ अनोखा


आओ करें कुछ अलग कुछ अनोखा
जिसमें भरा हो जोश उमंग
और हो जो जादू भरा
आओ चुने कुछ तिनके
चिड़ियों के जैसे
बनाएं इक घोंसला
आओ बटोरे कुछ पत्ते
लगायें इक अलाव
ठिठुरती ठंढ में
आओ चढ़ें पेड़ों पें
उन्हें हिलाएं डुलायें
और नीचे उतर आये
आओ बीच सड़क पे
लगायें ठहाके जी भर के
जैसे की बच्चें किया करतें हैं
आओ करें कुछ हंसी ठिठोली
हम आपने आप से
जो छुट गया कहीं पीछे
आओ बुलाएँ अपना बचपन
वो सादगी वो निडरता
जो बेरंग जिन्दगी में रंग भर दे
 

October 3, 2010

कुछ बचा रखना!

ग़मों के पार अगर जाना हो ,  अपने जख्मों को हरा रखना
गर ख्वाहिश  हो आसमां की तो ,  उम्मींदो का बाग़ भरा रखना...

ज़िन्दगी की उमस भरी दोपहरी में , कुछ खुशनुमा आवोहवा रखना
दर्द और बढ़ाएंगे ये दुनियावालें  , पास में दर्दें दिल की दवा रखना...

जहर घोलतें हैं लोग मीठी बातों से , ऐसे लोगों से खुद को जुदा रखना
हो जुदाई ही मयस्सर कहीं जो उल्फत में , यार को मान के दिल में खुदा रखना...

हौंसलो की भी आजमाइश हुआ करती हैं , अपने पाओं को धरती में जमा रखना
पावों के नीचे से छीन ले जमीं दुनिया , इससे पहले बचा के कुछ आसमां रखन...

कहीं कुतर न दें वो पंख फरफराए तो , अपने अरमानों को दिल में दबा रखना
छिन न लें कहीं वो खुश होने की वजह , अपने आखों में ही सपनों का पता रखना...

मिले न प्यार जमाने का कोई बात नहीं , अपना प्यार अपने वास्ते बचा रखना
न होने पाए कभी विरान ये दिल की दुनिया , हर कोने में जला के शमां  रखन...

October 2, 2010

आओ मन की आंख से देखे

क्रोध और नफरत के नीचे, दबा हुआ होगा कहीं प्यार
निर्बल दुर्बल असहाय सा , करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

उलझी -उलझी अनसुलझी सी, अव्यक्त है मन की भाषा
अकड़ी जकड़ी अन्तर्द्वंद में, अभिव्यक्ति चाहे अभिलाषा
अपनेपन से अपनेमन का, अभी अधूरा साक्षात्कार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

धोखा और फरेब की जननी , पाने और खोने की चिन्ता
भय और आक्रोश की जननी , अच्छा बुरा होने की चिन्ता
सच्चाई और अच्छाई पर, बढ़ता जाता अत्याचार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

दुःख का भय और सुख की चिन्ता , आत्म-प्रलोभन आत्म-विकार
समभावना समकामना सच्चे जीवन का आधार
कम क्रोध और लोभ मोह में फंसा हुआ आचार - विचार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

राजनीती

बाँट रहा है देश को कोई , जनता आँखे मूंद रही
क्यों जन मन के लिए नाकाफी, राष्ट्र प्रेम की बूँद रही

लगा के कोई आग दिलो में , आपनी रोटी सेंक गया
फंसा देश क्यों जान बुझकर , जाल सिकारी फेंक गया
कर्णधारों ने चुप्पी साधी , करुणा न इक फूट सका
तभी इक पथभ्रष्ट लाल ही , अमन  देश का लूट सका
पूछ रही है भारत माता , हाय ये कैसी अनीति है
नफरत ही नफरत हो दिल में , यही राज की निति है

बड़ी बुरी महंगाई है

सूखी रोटी खाना मुश्किल , सब्जी दाल है लाना मुश्किल
सर पे शामत आयी है , बड़ी बुरी महंगाई है

महंगाई मुँह फाड़ खड़े , बनेंगे कैसे दही बड़े
दूध की कीमत बढती जाए , महंगाई सर चढ़ती जाए
सपना हुयी मलाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

जेब है खाली कैश नहीं , चूल्हा है पर गैस नहीं
पानी से न भूख दबा , आखिर किसपर चढ़े तबा
पेट में आग लगाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

अधनंगे, अधपेटे हैं , पेट पकरकर लेते हैं
महंगाई अब हंसती है, अपने बंधन कसती है
आपने पर फैलाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

ठगे - ठगे से लोग खड़े , नेता मिलकर पेट भरे
आपने हिस्से बाँट रहे , सुख सुविधा सब चाट रहे
दुनिया देती दुहाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

October 1, 2010

सुमन

 सदा सुमन की तरह

बड़ा सा दिल रखो अपना .. खुले गगन की तरह,
रहो बेख़ौफ़ बेपरवाह .. मलय पवन की तरह,
न चुभो तीर बनके दिल में , किसी चुभन की तरह,
रहो बिखेरते खुश्ब्हू , सदा सुमन की तरह 

LIKE MY FB PAGE FRNZZ

https://www.facebook.com/navbhartiseva/