बड़ी ही हँसी मैं किताबों की दुनियां , सभी रंग खुद में समाए हुए हूँ
जुबां से नहीं जो कही जा सकी है , कई राज ऐसे छुपाये हुए हूँ
पोरस से लेकर सिकंदर की बाते , बाहर की बाते या अंदर की बातें
बड़े शौख से अपने पन्नों के नीचे , हर इक हकीकत दबाए हुए हूँ
राजा रानी और सिंहासन के झगड़े , प्रजा भुखमरी और राशन के झगड़े ,
खुशी में भी मैंने मनाई है खुशियाँ , और गम में आंसू बहाए हुए हूँ
माना की कहती है नानी कहानी , मैं रखती हूँ उससे पुरानी कहानी
सदियों पुरानी ख्यालों से आगे , तिलस्मी एय्यारी सुनाए हुए हूँ
मानव के मन की तहें मैंने खोली , नही जो वो बोला वो बातें भी बोली
क्या सोंचता है कोई अपने दिल में , वो जज्बात भी मैं बताए हुए हूँ
लैला और मजनूं के वादे और कसमें , तोड़ी जो हीर और राँझा ने रस्में
जमाने के संग-संग मै भी जली हूँ , और प्यार उनका जलाए हुए हूँ
वेदों - पुरानों और ग्रंथों की ढेरी , संतों और गुनियों की बातें बहुतेरी
रंगे - बिरंगे अनोखे - अजूबे , कई चित्र खुद पे बनाए हुए हूँ
मैंने समेटे हैं हर ज्ञान खुद में , गृह ज्ञान से लेके विज्ञान खुद में
लाखों हजारो को मैं अपने दम पे , सफलताओं का रस चखाए हुए हूँ
बिगरे सहजादो को मैंने संवारा , पतितो को पावन बनाके उबारा
माने ना माने जमाना ये बातें , कई बार दम मैं दिखाए हुए हूँ
मैं हूँ कलाओं को कब से संजोये , सुर ताल लय को हूँ खुद में पिरोये
नहीं दे सकी साथ जिनका ये दुनिया , मैं साथ उनका निभाए हुए हूँ
खोते रहे कई दिन रैन मुझमें , पाते रहे सब सुख चैन मुझमें
हारे हुए को भी देके दिलासा , आँखों में तारे चमकाए हुए हूँ
मगर अब जमाना बदलने लगा हैं, कई और के रंग में ढलने लगा हैं
कभी ना कभी लौटेंगे मेरे अपने , मैं आस अब भी लगाये हुए हूँ
नव भारती सेवा ट्रस्ट की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है महिलाओं का सशक्तिकरण। बदलते वक्त के साथ महिलाओं को भी अपनी परिधि का विस्तार करना होगा, यही समय की मांग है। समाज मे उपेक्षित रूप से जी रहीं महिलाओं को हम उनके ताक़त का भान कराकर उन्हें अपने सम्मानित रूप से जीने का अधिकार प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते है|
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