October 18, 2010

अस्तित्व

देकर  इक पिंजरा  सोने  का  , उड़ान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

टकराकर  रोज  किनारों  से , लहरों  ने  रोना  सीख  लिया
जख्मों  का  पीब  बना  जैसे , आंसूं  से  धोना  सीख  लिया 

इक आह की लौ जो जलती थी ,वो वक्त के आगे नही टिकी
इक खुशी कभी जो दिखती थी , ना जाने फिर क्यूँ नही दिखी

इस  डर  से  ना  मुस्काए की , मुस्कान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

पिसते जीवन की चक्की में  , तपतें  चूल्हों  की भट्टी  में
दुनिया  की  खातिरदारी  में , अब रक्त बचा ना पुट्ठी में

गम खा-खा कर भी गुमसुम है , आंसू पी के भी मौन हैं ये
है शब्द  मगर  निः शब्द  खड़े  , ना जाने भी की कौन हैं ये

कभी बेटी कभी बहु कहकर  ,  पहचान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

मेरे   भी   सपने   फूटेंगे   , अंकुर  का  ऐसा  दावा  है
धीरे - धीरे  चिंगारी  को  , बनना  ही  इकदिन लावा है                 

इक  हाहाकार  उठेगी  जब , तब  तुंफा  और  प्रलय  होगा
फिर से इस सारी सृष्टि पर , ममता और प्यार का जय होगा

टूटी - फूटी - झूटी  ही सहीं ,  अरमान  छिन  लेती  दुनिया
आवाज   उठाने   से   पहले   , जुबान  छिन  लेती  दुनिया

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