बस आखिरी साँस ही बांकी है , फिर भी जीने की अभिलाषा
लगती है दुनिया विष जैसी , पर मिटे न पीने की आशा
है पता की वो न आएगा , जो चला गया है इस जग से
लगती है झूठी सच्चाई , सच उसके आने की आशा
वो फसा हुआ है उलझन में , कई सालों से कई अरसों से
मिटता जाता है जीवन पर , मिटती ही नहीं मन की आशा
उम्मीदों का इक गुलशन है , ख्वाबों के फूल लगे जिसमें
अरमानों के इस सागर का , पतवार है जीवन की आशा
अँधेरे में बन के ज्योती , आ जाती चुपके से मन में
उसर-बंजर धरती पर भी , कुछ सपने बोती है आशा
बनके तोहफे दरवाजों पर , रहती है मुसीबत खड़ी हुई
जब लगती है गम की मूर्छा , संजीवनी होती है आशा
कुछ बुरा नहीं कुछ भला नहीं , जो होता है वो होनी है
आने वाला कल अपना है , ढाढस दे जाती है आशा
जो हर गया उससे पूछो , कैसे वो जीत सका खुद को
आँखों में दर्द भरा लेकिन , मन में मुस्काती है आशा