March 1, 2011

आशा

बस आखिरी साँस ही बांकी है , फिर भी जीने की अभिलाषा 
लगती है दुनिया विष जैसी , पर मिटे न पीने  की आशा 

है पता की वो न आएगा , जो चला गया है इस जग से 
लगती है झूठी सच्चाई  ,  सच उसके आने की आशा 

वो फसा हुआ है उलझन में , कई सालों से कई अरसों से 
मिटता जाता है जीवन पर , मिटती ही नहीं मन की आशा

उम्मीदों का इक गुलशन है ,  ख्वाबों के फूल लगे जिसमें 
अरमानों के इस सागर का  , पतवार है जीवन की आशा 

अँधेरे में बन के ज्योती , आ जाती चुपके से मन में
उसर-बंजर धरती पर भी , कुछ सपने बोती है आशा

बनके तोहफे दरवाजों पर , रहती है मुसीबत खड़ी हुई 
जब लगती है गम की मूर्छा , संजीवनी होती है आशा

कुछ बुरा नहीं कुछ भला नहीं , जो होता है वो होनी है
आने वाला कल अपना है , ढाढस  दे  जाती है आशा

जो हर गया उससे पूछो , कैसे वो जीत सका खुद को 
आँखों में दर्द भरा लेकिन , मन में मुस्काती है आशा


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