February 8, 2011

वसंत

बहारों का मौसम , नज़ारों का मौसम
है आया धरा के  ,   श्रृंगारों का मौसम

झरें पीले पत्तें , थी सूनी सी डाली
लगे नए पल्लव . अब छाई हरियाली

है सजने लगे अब , लताओं की लड़ियाँ
कली खोलती , धीरे-धीरे पंखुरियां

लगने लगे आम-लीची पे मंजर 
भंवरा भटकता है , बौराया बनकर

चलने लगी है , वसंती हवाएँ
घुसती है तन में , और मन गुदगुदाए

खड़े प्रेम के देवता, लेके तरकश
सामने लगा कोई, ख्वाबों में बरबस

हाथों में वीणा ,हैं आसन कमल के
आई धरा पे है,  वागीशा  चलके

मिटाती अँधेरा, लुटती है सदगुण
जला ज्ञान दीपक, हटाती है अवगुण

दीवाना है अम्बर, मचलती जमीं है
है सबको पता , ये वसंत पंचमी है

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