October 2, 2010

आओ मन की आंख से देखे

क्रोध और नफरत के नीचे, दबा हुआ होगा कहीं प्यार
निर्बल दुर्बल असहाय सा , करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

उलझी -उलझी अनसुलझी सी, अव्यक्त है मन की भाषा
अकड़ी जकड़ी अन्तर्द्वंद में, अभिव्यक्ति चाहे अभिलाषा
अपनेपन से अपनेमन का, अभी अधूरा साक्षात्कार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

धोखा और फरेब की जननी , पाने और खोने की चिन्ता
भय और आक्रोश की जननी , अच्छा बुरा होने की चिन्ता
सच्चाई और अच्छाई पर, बढ़ता जाता अत्याचार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

दुःख का भय और सुख की चिन्ता , आत्म-प्रलोभन आत्म-विकार
समभावना समकामना सच्चे जीवन का आधार
कम क्रोध और लोभ मोह में फंसा हुआ आचार - विचार
निर्बल दुर्बल असहाय सा, करता होगा हाहाकार
आओ मन की आंख से देखे , अंतरतम में झांक के देखें

राजनीती

बाँट रहा है देश को कोई , जनता आँखे मूंद रही
क्यों जन मन के लिए नाकाफी, राष्ट्र प्रेम की बूँद रही

लगा के कोई आग दिलो में , आपनी रोटी सेंक गया
फंसा देश क्यों जान बुझकर , जाल सिकारी फेंक गया
कर्णधारों ने चुप्पी साधी , करुणा न इक फूट सका
तभी इक पथभ्रष्ट लाल ही , अमन  देश का लूट सका
पूछ रही है भारत माता , हाय ये कैसी अनीति है
नफरत ही नफरत हो दिल में , यही राज की निति है

बड़ी बुरी महंगाई है

सूखी रोटी खाना मुश्किल , सब्जी दाल है लाना मुश्किल
सर पे शामत आयी है , बड़ी बुरी महंगाई है

महंगाई मुँह फाड़ खड़े , बनेंगे कैसे दही बड़े
दूध की कीमत बढती जाए , महंगाई सर चढ़ती जाए
सपना हुयी मलाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

जेब है खाली कैश नहीं , चूल्हा है पर गैस नहीं
पानी से न भूख दबा , आखिर किसपर चढ़े तबा
पेट में आग लगाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

अधनंगे, अधपेटे हैं , पेट पकरकर लेते हैं
महंगाई अब हंसती है, अपने बंधन कसती है
आपने पर फैलाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

ठगे - ठगे से लोग खड़े , नेता मिलकर पेट भरे
आपने हिस्से बाँट रहे , सुख सुविधा सब चाट रहे
दुनिया देती दुहाई है , बड़ी बुरी महंगाई है

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