October 22, 2010

दिल्ली फँसी घोटालों में

बनते  बिगड़ते  बवालों  में , नेताओं  के  चालों  में
दुनिया भर के सवालों में , दिल्ली फँसी घोटालों में

कॉमनवेल्थ की आड़ में , कॉंग्रेस की सरकार में
कलमाडी  की  वार  में  , दिल्ली दबी बेकार में

खेलों  की  तैयारी  में  , वक्त  की  मारामारी  में
लालच  की  बीमारी  में , दिल्ली गई लाचारी में

भारत माँ के आनों पे , मक्कारी भरे बहनों पे
ताले लगे जुबानों पे , दिल्ली के मुस्कानों पे

जनता थी भोलेपन में , मैल भरा उनके मन में
लगे खेलने वो धन में , दिल्ली के ही आँगन में

अरबों में और खरबों में , नेताओं के तलबों में
रंग – बिरंगे जलबो में , दिल्ली खरी है मलबों में

आँखों में आंसू भरके , कितनों को बेघर कर के
खेला किये वो बढ़ – बढ़ के, दिल्ली चुप हुई डरके

रही खबर बस कानों में , हँसते गाते मेहमानों में
टेबल – कुर्सी खानों में , दिल्ली सजी दुकानों में

झूट दबे सच बोला जाये, देशभक्ति रस घोला जाये
बेईमानों को तोला जाये , दिल्ली अब मुँह खोला जाये

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