October 4, 2010

जज्बात

आंसू
नहीं बहते अब आँखों से
क्योंकी इसकी भाषा सबको पढनी नहीं आती
सच
अब बोलना हुआ मुश्किल
क्योंकि झूठ सबको पकड़नी नहीं आती
दर्द
दबाएँ हुए  हैं दिलों में
क्योकि ये बात सबको बताई नहीं जाती
गम
दोस्त बना हैं जबसे
किसी और से यारी निभाई नहीं जाती
ख़ामोशी                                                                               
 पसंद हैं मुझे
क्योंकि ये बहुत कुछ कहा करती हैं
जिंदगी
क्यूँ है इतनी बेपरवाह
न चाहकर भी सबकुछ सहा करती हैं 

कुछ अलग कुछ अनोखा


आओ करें कुछ अलग कुछ अनोखा
जिसमें भरा हो जोश उमंग
और हो जो जादू भरा
आओ चुने कुछ तिनके
चिड़ियों के जैसे
बनाएं इक घोंसला
आओ बटोरे कुछ पत्ते
लगायें इक अलाव
ठिठुरती ठंढ में
आओ चढ़ें पेड़ों पें
उन्हें हिलाएं डुलायें
और नीचे उतर आये
आओ बीच सड़क पे
लगायें ठहाके जी भर के
जैसे की बच्चें किया करतें हैं
आओ करें कुछ हंसी ठिठोली
हम आपने आप से
जो छुट गया कहीं पीछे
आओ बुलाएँ अपना बचपन
वो सादगी वो निडरता
जो बेरंग जिन्दगी में रंग भर दे
 

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