October 8, 2010

उलझन

मैं  भी  रोया  तू भी रोई , पर  रोने  से क्या होता है
मैं  तेरा  हूँ  तू  मेरी  है  , जुदा  होने से  क्या होता हैं

है कौन भला इस दुनिया में , जिसको न कोई गम होता है
जाने से दूर सनम से भी , ये प्यार कहाँ कम होता है

जकड़े जाते हैं तन लेकिन , मन बांध कहाँ कोई पाता है
जब आँख देखती है सपने , मन का पंछी उड़ जाता है

दुनिया को नही मंजूर है ये , कोई प्यार भरा अफसाना हो
चाहे जितने भी हो दुश्मन , पर ना कोई दीवाना हो

मिलती हैं सजाएं उल्फत में , पत्थर बरसाए जाते हैं
ऐ यारा कर्ज मुहब्त में , ऐसे ही चुकाए  जाते है

फिर उठेंगी ऊँची दिवारे , लाखों फतवे जारी होंगे
जिसे देख कयामत रोएगी , वो सितम ऐसे भारी होंगे

ममता देने वाली आँचल , बिल्कुल छोटी पर जायगी
खुशियाँ देने वाली आँखे , गम आँखों में भर जायगी

टूटेंगे जब दो दिल तबही, इस दुनिया को राहत होगी
महफिल में नफरतवालों के , फिर से रुसवा चाहत होगी

इस प्रेम डगर में दीवानी  ,  इक मंजिल है दो राहें है
उस ओर जमाने की रौनक , इस ओर दर्द और आहें है 

काँटों से भरे इन राहों पे , चल पाना बड़ा मुश्किल होगा
दम निकलेगा अरमानों का , छलनी-छलनी ये दिल होगा  

 ऐसा ना हो आगे बढके , फिर से पीछे मुडजाना  हो
चलने से पहले सोंच जरा , ना की पीछे पछताना हो

अच्छा होगा तू सुलझाले ,अपनी उमीदों की उलझन 
ऐसा ना हो तेरे कारण  , जख्मी हो मेरा दिवानापन

ये सौदा दिलों का होता है , ये खेल बड़ा ही मुश्किल है
तेरे पास जमाने की दौलत , मेरे पास तो बस मेरा दिल है

हर गम दुनिया के सह लेगा , ये गम ना दिल सह पायेगा
मैं रोक न पाउंगा दिल को , दर्दे गम में बह  जायगा

इस दम ही मुझको भूल के तू , कोई ढूंढ़ ले नये बहाने को
या तो दे वफाओं की रौनक , या मार दे फिर दीवाने को

क्या खोना है क्या पाना है , जो करना है इस दम कर ले
अपनाले या फिर ठुकरादे , अपनी उलझन  को कम कर ले

3 comments:

pooja said...

amazing.....keep up the good work preeti....

pooja said...

amazing.....keep up the good work preeti....

Jay said...

बहुत अच्छी कविता है

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