October 11, 2010

जमाना बुरा है

मैं  भी  भली  हूँ  और  तू  भी  भला  है , फिर क्यूँ  कह रहे  हो  जमाना  बुरा है

जो  हम तुम  निभाते रहे कसमें -वादे  , क्यों  हो  बेवफाई  ये  धोखा  कहाँ  है                                              
                                                                                               
जमाने  को  मुजरिम  कहे  जा  रहे हो , जमाना  तो  हमसे और तुमसे  बना  है
हम  में  से   ही  कोई   गद्दार   होगा   ,  जमाना  बेचारा  बेवजह  पीस  रहा  है

बुरे  पे   अच्छाई  का  पानी   चढ़ाके   , दमकता  चमकता  हर  इक  चेहरा   है
मिलावट  की  इतनी  बुरी लत  पड़ी है , है  ईमान  कम  ज्यादा  धोखा  भरा  है

छुपाते  रहे  अपनी  कमजोरियां   हम  , जमाने  को  हम  ने  बुरा  कह  दिया  है
हमें  है  पता  वो  न  शिकवा   करेगा  ,  तभी  नाम  बदनाम  उसका   किया   है

जो झाँका किये एकदिन दिल के अंदर , तो  देखा  की  भगवान  सोया  पड़ा   है
जगाया  बहुत उनको पर  वो  न जागे , हुई  ये  खबर  की  वो  हमसे  खफा   है

ये पूछा जब हमने बताओ बस इतना  , भला  हमसे  ऐसी  हुई  क्या  खता   है
वो  कहने  लगे  पूजते  तुम  मुझे  हो , मगर  तुझमे  आदत  सब शैतान का है

बनाया  है  मैंने  ही  सबको  जहाँ  में , मगर  सब  मुझे  ही  बनाने  लगा  है
समझने  लगा है बड़ा खुद को मुझसे , मेरी  रहमतों  को  भुलाने   लगा  है 

वाकिफ  हूँ  मैं  तेरी  हर एक नस से , नासमझ फिर भी मुझसे छुपाने लगा है
करता है कम और दिखता है ज्यादा , बहुत  दूर  मुझसे   तू   जाने  लगा  है

बदल अपनी आदत बना पाक दिलको , मिटा दे भरम वो जो तुझमें  भरा  है
संभलने  का  तू  आज  संकल्प  करले , भुला  दूंगा  मैं भूल मेरा दिल बड़ा है

मतलब - परस्ती  फरेबी  में  पड़  के  , खुद  को  ही  धोखा दिए  जा रहा  है
बुराई  को  अपनी  मिटाता  नहीं   है   , कहता  है  सबको  जमाना  बुरा  है

1 comment:

Unknown said...

nice one keep writing.

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