देकर इक पिंजरा सोने का , उड़ान छिन लेती दुनिया
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया
टकराकर रोज किनारों से , लहरों ने रोना सीख लिया
जख्मों का पीब बना जैसे , आंसूं से धोना सीख लिया
इक आह की लौ जो जलती थी ,वो वक्त के आगे नही टिकी
इक खुशी कभी जो दिखती थी , ना जाने फिर क्यूँ नही दिखी
इस डर से ना मुस्काए की , मुस्कान छिन लेती दुनिया
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया
पिसते जीवन की चक्की में , तपतें चूल्हों की भट्टी में
दुनिया की खातिरदारी में , अब रक्त बचा ना पुट्ठी में
गम खा-खा कर भी गुमसुम है , आंसू पी के भी मौन हैं ये
है शब्द मगर निः शब्द खड़े , ना जाने भी की कौन हैं ये
कभी बेटी कभी बहु कहकर , पहचान छिन लेती दुनिया
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया
मेरे भी सपने फूटेंगे , अंकुर का ऐसा दावा है
धीरे - धीरे चिंगारी को , बनना ही इकदिन लावा है
इक हाहाकार उठेगी जब , तब तुंफा और प्रलय होगा
फिर से इस सारी सृष्टि पर , ममता और प्यार का जय होगा
टूटी - फूटी - झूटी ही सहीं , अरमान छिन लेती दुनिया
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया
नव भारती सेवा ट्रस्ट की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है महिलाओं का सशक्तिकरण। बदलते वक्त के साथ महिलाओं को भी अपनी परिधि का विस्तार करना होगा, यही समय की मांग है। समाज मे उपेक्षित रूप से जी रहीं महिलाओं को हम उनके ताक़त का भान कराकर उन्हें अपने सम्मानित रूप से जीने का अधिकार प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते है|
October 18, 2010
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