December 18, 2010

किताबों की दुनियां

बड़ी ही हँसी मैं किताबों की दुनियां , सभी रंग खुद में समाए हुए हूँ
जुबां से नहीं जो कही जा सकी है   ,  कई  राज  ऐसे  छुपाये  हुए हूँ

पोरस से लेकर सिकंदर की बाते , बाहर की बाते या अंदर की बातें 
बड़े शौख से अपने पन्नों के नीचे , हर इक हकीकत दबाए हुए हूँ

राजा रानी और सिंहासन के झगड़े , प्रजा भुखमरी और राशन के झगड़े ,
खुशी में भी मैंने मनाई है खुशियाँ  ,  और गम में आंसू  बहाए हुए हूँ

माना की कहती है नानी कहानी  ,  मैं रखती हूँ उससे पुरानी कहानी
सदियों पुरानी ख्यालों से आगे  ,  तिलस्मी एय्यारी सुनाए हुए हूँ

मानव के मन की तहें मैंने खोली , नही जो वो बोला वो बातें भी बोली
क्या सोंचता है कोई अपने दिल में , वो जज्बात भी मैं  बताए हुए हूँ

लैला और मजनूं के वादे और कसमें , तोड़ी जो हीर और राँझा ने रस्में
जमाने के संग-संग मै भी जली हूँ , और प्यार उनका जलाए हुए हूँ

वेदों - पुरानों और ग्रंथों की ढेरी , संतों और गुनियों की बातें बहुतेरी
रंगे - बिरंगे  अनोखे - अजूबे  ,  कई चित्र खुद पे बनाए हुए हूँ

मैंने समेटे हैं  हर ज्ञान खुद में  , गृह ज्ञान से लेके विज्ञान खुद में
लाखों हजारो को मैं अपने दम पे , सफलताओं का रस चखाए हुए हूँ

बिगरे सहजादो को मैंने संवारा , पतितो को पावन बनाके उबारा
माने ना माने जमाना ये बातें ,    कई बार दम मैं दिखाए हुए हूँ

मैं हूँ कलाओं को कब से संजोये , सुर ताल लय को हूँ खुद में पिरोये
नहीं दे सकी साथ जिनका ये दुनिया , मैं साथ उनका निभाए हुए हूँ

खोते रहे कई दिन रैन मुझमें ,    पाते रहे सब सुख चैन मुझमें 
हारे हुए  को भी देके दिलासा  ,  आँखों में तारे चमकाए हुए हूँ

मगर अब जमाना बदलने लगा हैं, कई और के रंग में ढलने लगा हैं
कभी ना कभी लौटेंगे मेरे अपने ,     मैं आस अब भी लगाये हुए हूँ

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