December 8, 2010

आलसीनामा

दिन रात करूँ सुबह शाम करूँ , जब जी चाहे आराम करूँ
बीते ऐसे  ही  अब  जीवन  ,  जी करता ना कोई काम करूँ

ये भाग दौड़ है क्यूँ करना , इस उलझन में है क्यूँ पड़ना
इन जोड़-तोड़ से क्या होगा , आखिर तो इक दिन है मरना

जाने  सब  क्यूँ  बेचैन  रहे , सपनों  में  खोये  नैन  रहे
ये जीना भी कोई जीना है , ना नींद रहे ना चैन रहे

जो  होना  है  वो  होता  है , कोई पाता है कोई खोता है
कोई पत्थर से सर फोड़ रहा , कोई तान के चादर सोता है

दुनिया  मारे  हमको  ताने , आये हमे अपनी समझाने
पर पक्के हम अपनी धुन के , हम तो अपनी मन की माने                  

जो  होता  है  वो  हो  बेकल  , हमको न गंवाने है ये पल
हम आज में जीने वाले हैं , देखेंगे  जो  होना  हो  कल

है अपने लिए हरपल हरक्षण , है ऐसो आराम भरा जीवन
परवाह नहीं करनी हमको , चाहे कहे जहाँ इसे आलसपन 

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