October 6, 2010

शायरी

ये गम नहीं की गैरों ने कस्ती है डुबोई
हैं गम मुझे अपने खड़े तमाशबीन  थे
रह-रह के मुझको दर्द ये बेचैन करता हैं                                                           
मेरे खाब से भी ज्यादा उसके सच हसीन थे

ऐ हंसी तू सब हसीनों से जुदा लगती है
मेरी इबादत मुझे तू मेरा खुदा लगती है
मैं हूँ बीमारे दिल तेरी  मुहब्बत  में
तू मुझे मेरे दर्दे दिल की दवा लगता है

तेरी जुल्फों की घटा में मुझे खोने तो दे
हैं तेरा प्यार समंदर ये दिल डुबोने तो दे
अगर तू दे नहीं सकता मुझे कुछ भी ऐ सनम
अपने कांधे पे रखके सर मुझे रोने तो दे

कभी जिन्दगी में ऐसे भी मोड़ आते हैं
अपने साये भी अपना साथ छोड़ जाते हैं
कुछ को खुदा की रहमत उबार लेती  हैं
कुछ को ये वक्त के तूफान तोड़ जाते हैं

खुदा का वास्ता मुझको मेरे सनम मत दे
जिसे निभा न सकूं मैं ऐसी  कसम  मत दे
न दे सके तू ख़ुशी जो तो कोइ बात  नही
कर रहम इतना सा मुझपे की अपने गम मत दे

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