January 29, 2011

कबूलनामा

में हूँ गुनाहगार , मैंने की हैं गलतियाँ
इन्सान हूँ मैं , मुझमें भी हैं कमजोरियाँ

करतें रहें ये लोग , मैंने क्या किया नया
उठती नहीं हैं उनपे , मुझपे उठती उंगलियाँ

कर लूँ मैं प्रायश्चित , या ढुंढू कोई रास्ता
कर सकूं साबित मैं , कैसे बेगुनाहियाँ

पर वो चुप रहेगा ना , देगा गवाहियाँ
कर के कुछ जतन , मिटा दूँ उसकी हस्तियाँ

सोचता हूँ  मैं गिना दूँ  , चाल-चलके 
न्यायाधीश की नज़र में, उसकी खामियां

लौट आऊं फिर से,  अपनी राह मैं वापिस
या दबा दूँ दिल में अपने,  अपनी खामियां

डरता हैं सच बोलने से,  दिल मेरा
जीतता है आज,  झूठ ही यहाँ

कशमकश में हूँ फंसा , की क्या  करूँ
संभलूं की करूँ , गलतियों पे गलतियाँ

January 26, 2011

युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए

गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं
सुभाष गाँधी नेहरू सा , महान चाहिए          
युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए

जो प्रेम सत्य शांति की , राह को चुने
हर एक दिन दुर्बल  , की आह को सुने   
कर के दिखाए पूरा , जिस स्वप्न को बुने            
आँखों को अपने स्वप्न का सम्मान चाहिए
युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए

 जो आया हो माता का , कर्ज चुकाने
 जो आया हो बेटा का , फर्ज निभाने
 जो भटके को आया , सही दिशा दिखाने
 थक चुकी दिशाएं  , अवशान चाहिए
 युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए 

 कलानिधि हैं कितने पर , चमक की है कमी
 सुमन तो है चमन में पर , गमक की है कमी
 सूर्य है लाखों मगर , दहक की है कमी
करदे जो प्रज्वलित ह्रदय , वो सूर्यभान चाहिए
युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए 

तोड़ दे पुरानी जो , घिसी पिटी प्रथा 
 जो मिटा दे देश से , कलेश की कथा
 जो सुने ह्रदय से , मातृभूमि की विथा
 राष्ट जिसपे कर सके , अभिमान चाहिए
 युग मांगता है युग को , नौजवान चाहिए 





January 21, 2011

चिड़ियाँ की कहानी

तिनका-तिनका जोड़ -जोड़ कर
बना सुघड़ सुन्दर इक घर
फुदक रही इसमें इक चिड़ियाँ            
 फैलाकर के अपना पर  

अभी-अभी आई दुनियां में
इसे कहाँ इस जग की खबर         
छुप गया सूरज हुआ अँधेरा
लगाने लगा चिड़ियाँ को डर

लिपट गई वो माँ से जाके   
बड़े - बड़े पर के अन्दर
नींद बहुत फिर आई उसको
उठी तभी जब हुआ सहर
  
धीरे -धीरे गुजर गया पल
बढ़ने लगे चिड़ियाँ के पर
लगी हौसला देने माँ फिर
आजा पास मेरे उड़कर

माँ सिखलाती उड़ने के गुण
चिड़ियाँ का मन इधर-उधर
मन के अन्दर मची खलबली
इकटक देख रही अम्बर

माँ ने हाँथ पकड़ के उड़ाया
मिला उसे सपनों का सफर
आया जोश चिड़ियाँ को इतना
उड़ने लगी स्वच्छंद होकर

खो गई वो अपनी ही धुन में
ऊपर -ऊपर और ऊपर
अनसुनी करती ही जाती
माँ का कहना भी सुनकर

तभी अचानक उसने देखा
खड़ा पेड़ आगे आकर
याद न आया बचने का गुर
उलझी टहनी में जाकर

लगा एक पल मौत आ गई
इतने जख्म हुए तन पर
अटक-लटक के टहनी-टहनी
गिरी जमीं पर फिर आकर

खुली आँख तब उसने देखा
सहला रही माँ उसके पर
जगह -जगह से टूट चुके थे
उसके सुन्दर कोमल पर

देती ढाढस चिड़ियाँ को माँ
तरह - तरह से समझाकर
दुःख से चिड़ियाँ फिर भी व्याकुल
आंसू गिरते झर - झर कर

अब शायद वो उड़ न सकेगी
उग न सकेंगे टूटे पर
हो कैसे निर्वाह ये जीवन
खड़ी समस्या है आकर

धीरे-धीरे घाव भर गए
लौटे कई मौसम आकर
लेकिन मन के घाव मिटे ना
लौटी ना खुशियाँ जाकर

पड़ी घोंसले में गुमसुम सी
तकती चिड़ियाँ बस अम्बर
हारी माँ समझाकर उसको
सिमटी वो खुद में छुपकर

इक दिन माँ गई दाना चुगने
साँझ ढला ना आई घर
भूखी प्यासी बाट जोहती
तडपे चिड़ियाँ रह-रह कर

इसी आस में कई दिन बीतें
आएगी माँ अन्न लेकर
लेकिन माँ वापस ना लौटी
रोई वो माँ - माँ करकर

अब तो भूखा रहा न जाए
 जाना होगा खुद उड़कर
 इस डाली से उस डाली पर
 जाए कैसे लगता डर

 याद किये फिर माँ की बाते
 कैसे हिलाए जाते पर
 अब चाहत बस दाने की थी
नहीं लुभाता था अम्बर

धीरे -धीरे सरक-सरक के
चढ़ी वो डाली के ऊपर
साहस करके पर फैलाया
उडी विश्वास मन में भर कर

खुद को उड़ता देख - देख के
आता हौशला बढ़ -बढ़ कर
तरह-तरह के फल और पौधे
पास बुलाते ललचा कर

कई दाने फिर वो चुग लाई
खाया चिड़ियाँ ने जी भर
फिर से उड़ना सीखी चिड़ियाँ                                  
अपने साहस के दम पर

उसे हुआ एहसास की जीवन
होता है कितना सुन्दर
संभल-संभल के चलने का गुण
सिखा जाता है गिरकर



January 12, 2011

तितलियाँ

इठलाती तितलियाँ , कुछ बलखाती तितलियाँ
छोटी-छोटी बातों पे भी , खिलखिलाती तितलियाँ

इस डाल से उस डाल पे , हर डाल पे बैठे
आती नहीं है हाथ में , उड़ जाती तितलियाँ

जो आ गया करीब , फिर न दूर जा सका
जो दूर हो उसे पास , बुलाती तितलियाँ    

दंग है जमाना इनके , जलवों के आगे
नखरों से सबके होश , उड़ाती तितलियाँ  

अब कौन करे मंदिरों में , पूजा अर्चना
आजकल तो है दिलों में , पूजाती तितलियाँ   

वो भूल गया अपने , सारे सपने इरादे 
है आजकल तो सपनों में , आती तितलियाँ 

उड़ गए सब संस्कार , धूल की तरह
नए-नए तजुर्बे अब , सिखलाती तितलियाँ  

टूट जातें हैं पलों में , बांध सब्र के   
सोये हुए अरमान है , जगाती तितलियाँ

आँखों से मिलती आँखें , बातों से मिलती बातें
पर दिल से दिल कभी ना , मिलाती तितलियाँ

वो दूर हुए जा रहें हैं , अपनें अपनों से
क्योंकि ज्यादा प्यार है , जताती तितलियाँ   

माँ-बाप सफलता की , चाहत में मर रहें
बेटे को असफलता की , लत लगाती तितलियाँ      

उसको नहीं पसंद , जमानें की उलझनें
लगती है बुरी दुनियां , बस भाती तितलियाँ

बढ़ती गई नजदीकियां , मिटता गया भरम             
आँखों से शरम लाज , है हटाती तितलियाँ

जब तक हो भरा जेब , बनी दोस्ती रहें          
फक्करों से अपना साथ , है छुड़ाती तितलियाँ

ये मौज मस्ती के लिए , करती हैं यारियां
और नाम दोस्ती का , है बताती तितलियाँ

जीता है इनसे वो ही , इच्छा दृढ रही जिनकी
बचना की हर मोड़ पे , बहकाती तितलियाँ

January 2, 2011

दो हजार ग्यारह

नये सवेरे को लेकर , देखो सूरज आया है
उम्मींदों के पर पाके , हर शै मुस्काया है

नए-नए  सपने  जागे  हैं , आशाओं  के  भूपर                                        
सिहरन सी होती है मन में ,अरमानों को छूकर

भरे कुलांचे मन का पंछी , गाने लगा तराने
एकत्रित कर शक्ति सारी , उड़ने लगा उड़ाने   

झरने  लगे  हैं  पीले  पत्ते , नव  पल्लव  है  आया
काँटों के साये से निकलकर , कली-कली मुस्काया

नई  उमंगों  नई  तरंगों , ने  पर  फैलाया  है
दो हजार खुशियों के पल , लेकर ग्यारह आया है

शुभकामनाएं

नए साल में सब नई बात हों ,
                                      खिले से हो दिन और हँसी रात हों
बादल ग़मों के न मंडराने पाए ,
                                      हर रोज खुशियों की बरसात हो
ख्वाहिश रही जो अधूरी,हो पूरी,
                                      आनेवाला पल एक सौगात हो
न जंग न बैर न हो दुश्मनी  ,
                                     बस दोस्त की दोस्ती साथ हो
अरमां सजे सारे गुलशन के जैसे,
                                     मीठे से हर एक जज्बात हो
मिलते रहे हाथ से हाथ अब तक,
                                      मिले दिल से दिल वो मुलाकात हो

दस्तक

अभी खुलके इनसे मिल भी न पाए , की ये जा चुके हैं और वो आ गया है
जुदाई का दिल गम माना भी न पाया , घटा बन गगन में खुशी छा गया है

ये माना कि सच्चे हैं इनके हर वादे , बड़े  नेक  लेकर  हैं  आये  इरादे 
मगर हम भी इतने बेमरौवत नहीं हैं , ऐसे ही यूहीं किसी को भुलादे

इन्हें है पता हर इक आंसुओं का , ये है गवाह सारे खुशियों के पल का
बीते हुए पल सुलझ भी न पाए , सजाएँ स्वप्न कैसे आने वाले कल का

मगर है यही इस जहाँ कि बनावट , होता रहा यूहीं सदियों से अबतक
खिसक जाता चुपके से वर्ष पहला  , नया शाल धीरे से देता है दस्तक

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