तिनका-तिनका जोड़ -जोड़ कर
बना सुघड़ सुन्दर इक घर
फुदक रही इसमें इक चिड़ियाँ
फैलाकर के अपना पर
अभी-अभी आई दुनियां में
इसे कहाँ इस जग की खबर
छुप गया सूरज हुआ अँधेरा
लगाने लगा चिड़ियाँ को डर
लिपट गई वो माँ से जाके
बड़े - बड़े पर के अन्दर
नींद बहुत फिर आई उसको
उठी तभी जब हुआ सहर
धीरे -धीरे गुजर गया पल
बढ़ने लगे चिड़ियाँ के पर
लगी हौसला देने माँ फिर
आजा पास मेरे उड़कर
माँ सिखलाती उड़ने के गुण
चिड़ियाँ का मन इधर-उधर
मन के अन्दर मची खलबली
इकटक देख रही अम्बर
माँ ने हाँथ पकड़ के उड़ाया
मिला उसे सपनों का सफर
आया जोश चिड़ियाँ को इतना
उड़ने लगी स्वच्छंद होकर
खो गई वो अपनी ही धुन में
ऊपर -ऊपर और ऊपर
अनसुनी करती ही जाती
माँ का कहना भी सुनकर
तभी अचानक उसने देखा
खड़ा पेड़ आगे आकर
याद न आया बचने का गुर
उलझी टहनी में जाकर
लगा एक पल मौत आ गई
इतने जख्म हुए तन पर
अटक-लटक के टहनी-टहनी
गिरी जमीं पर फिर आकर
खुली आँख तब उसने देखा
सहला रही माँ उसके पर
जगह -जगह से टूट चुके थे
उसके सुन्दर कोमल पर
देती ढाढस चिड़ियाँ को माँ
तरह - तरह से समझाकर
दुःख से चिड़ियाँ फिर भी व्याकुल
आंसू गिरते झर - झर कर
अब शायद वो उड़ न सकेगी
उग न सकेंगे टूटे पर
हो कैसे निर्वाह ये जीवन
खड़ी समस्या है आकर
धीरे-धीरे घाव भर गए
लौटे कई मौसम आकर
लेकिन मन के घाव मिटे ना
लौटी ना खुशियाँ जाकर
पड़ी घोंसले में गुमसुम सी
तकती चिड़ियाँ बस अम्बर
हारी माँ समझाकर उसको
सिमटी वो खुद में छुपकर
इक दिन माँ गई दाना चुगने
साँझ ढला ना आई घर
भूखी प्यासी बाट जोहती
तडपे चिड़ियाँ रह-रह कर
इसी आस में कई दिन बीतें
आएगी माँ अन्न लेकर
लेकिन माँ वापस ना लौटी
रोई वो माँ - माँ करकर
अब तो भूखा रहा न जाए
जाना होगा खुद उड़कर
इस डाली से उस डाली पर
जाए कैसे लगता डर
याद किये फिर माँ की बाते
कैसे हिलाए जाते पर
अब चाहत बस दाने की थी
नहीं लुभाता था अम्बर
धीरे -धीरे सरक-सरक के
चढ़ी वो डाली के ऊपर
साहस करके पर फैलाया
उडी विश्वास मन में भर कर
खुद को उड़ता देख - देख के
आता हौशला बढ़ -बढ़ कर
तरह-तरह के फल और पौधे
पास बुलाते ललचा कर
कई दाने फिर वो चुग लाई
खाया चिड़ियाँ ने जी भर
फिर से उड़ना सीखी चिड़ियाँ
अपने साहस के दम पर
उसे हुआ एहसास की जीवन
होता है कितना सुन्दर
संभल-संभल के चलने का गुण
सिखा जाता है गिरकर
बना सुघड़ सुन्दर इक घर
फुदक रही इसमें इक चिड़ियाँ
फैलाकर के अपना पर
अभी-अभी आई दुनियां में
इसे कहाँ इस जग की खबर
छुप गया सूरज हुआ अँधेरा
लगाने लगा चिड़ियाँ को डर
लिपट गई वो माँ से जाके
बड़े - बड़े पर के अन्दर
नींद बहुत फिर आई उसको
उठी तभी जब हुआ सहर
धीरे -धीरे गुजर गया पल
बढ़ने लगे चिड़ियाँ के पर
लगी हौसला देने माँ फिर
आजा पास मेरे उड़कर
माँ सिखलाती उड़ने के गुण
चिड़ियाँ का मन इधर-उधर
मन के अन्दर मची खलबली
इकटक देख रही अम्बर
माँ ने हाँथ पकड़ के उड़ाया
मिला उसे सपनों का सफर
आया जोश चिड़ियाँ को इतना
उड़ने लगी स्वच्छंद होकर
खो गई वो अपनी ही धुन में
ऊपर -ऊपर और ऊपर
अनसुनी करती ही जाती
माँ का कहना भी सुनकर
तभी अचानक उसने देखा
खड़ा पेड़ आगे आकर
याद न आया बचने का गुर
उलझी टहनी में जाकर
लगा एक पल मौत आ गई
इतने जख्म हुए तन पर
अटक-लटक के टहनी-टहनी
गिरी जमीं पर फिर आकर
खुली आँख तब उसने देखा
सहला रही माँ उसके पर
जगह -जगह से टूट चुके थे
उसके सुन्दर कोमल पर
देती ढाढस चिड़ियाँ को माँ
तरह - तरह से समझाकर
दुःख से चिड़ियाँ फिर भी व्याकुल
आंसू गिरते झर - झर कर
अब शायद वो उड़ न सकेगी
उग न सकेंगे टूटे पर
हो कैसे निर्वाह ये जीवन
खड़ी समस्या है आकर
धीरे-धीरे घाव भर गए
लौटे कई मौसम आकर
लेकिन मन के घाव मिटे ना
लौटी ना खुशियाँ जाकर
पड़ी घोंसले में गुमसुम सी
तकती चिड़ियाँ बस अम्बर
हारी माँ समझाकर उसको
सिमटी वो खुद में छुपकर
इक दिन माँ गई दाना चुगने
साँझ ढला ना आई घर
भूखी प्यासी बाट जोहती
तडपे चिड़ियाँ रह-रह कर
इसी आस में कई दिन बीतें
आएगी माँ अन्न लेकर
लेकिन माँ वापस ना लौटी
रोई वो माँ - माँ करकर
अब तो भूखा रहा न जाए
जाना होगा खुद उड़कर
इस डाली से उस डाली पर
जाए कैसे लगता डर
याद किये फिर माँ की बाते
कैसे हिलाए जाते पर
अब चाहत बस दाने की थी
नहीं लुभाता था अम्बर
धीरे -धीरे सरक-सरक के
चढ़ी वो डाली के ऊपर
साहस करके पर फैलाया
उडी विश्वास मन में भर कर
खुद को उड़ता देख - देख के
आता हौशला बढ़ -बढ़ कर
तरह-तरह के फल और पौधे
पास बुलाते ललचा कर
कई दाने फिर वो चुग लाई
खाया चिड़ियाँ ने जी भर
फिर से उड़ना सीखी चिड़ियाँ
अपने साहस के दम पर
उसे हुआ एहसास की जीवन
होता है कितना सुन्दर
संभल-संभल के चलने का गुण
सिखा जाता है गिरकर
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