March 10, 2011

एहसास

मगरूर कह के हमें चल दिए वो , जो जज्बात हमको बताना न आया 
बहुत देर ठहरे वो देखेंगे मुड़के , पर आवाज देके बुलाना न आया                           

बढाती गई दूरियां गलतफहमी , मगर हमें उलझन सुलझाना न आया
वो सुनने को सच्चाई राजी हुए ना , और हमको करना बहाना न आया

 कहते रहे वो  और सुनते रहे हम , हमें हाले दिल भी सुनना न आया
है उनके लिए खेलना दिल से आसां , हमें पैंतरे वो चलाना न आया 

देतें है वो दोस्ती की दुहाई  ,  जिन्हें दोस्ती को निभाना न आया
 इतनी सी हमसे खता हो गई , हमें अपना दामन छुड़ाना  न आया 

नाराजगी दूर करते तो कैसे , हमें उनके नखरे उठाना न आया 
पूछो न हैं क्यूँ खफा जिंदगी से , करे क्या दिल को बहलाना न आया

  है नाज  उनको फितरत पे अपनी , हमें वो सलीका दिखाना न आया
गिराकर हमीं को हमारी नजर में , गया वो जो मेरा दीवाना न आया

मिलतें है दो दिल बड़ी मुश्किलों से , करे क्या दिल को मिलाना न आया
बीतेगी अब उम्र इस कसमकस में , वापस फिर क्यूँ वो जमाना न आया

आदत बुरी तो नहीं रूठने की , करूँ क्या जो हमको मानना न आया
ये माना की हम न उन्हें रोक पाए , उन्हें भी तो वापस आना न आया






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