October 3, 2010

कुछ बचा रखना!

ग़मों के पार अगर जाना हो ,  अपने जख्मों को हरा रखना
गर ख्वाहिश  हो आसमां की तो ,  उम्मींदो का बाग़ भरा रखना...

ज़िन्दगी की उमस भरी दोपहरी में , कुछ खुशनुमा आवोहवा रखना
दर्द और बढ़ाएंगे ये दुनियावालें  , पास में दर्दें दिल की दवा रखना...

जहर घोलतें हैं लोग मीठी बातों से , ऐसे लोगों से खुद को जुदा रखना
हो जुदाई ही मयस्सर कहीं जो उल्फत में , यार को मान के दिल में खुदा रखना...

हौंसलो की भी आजमाइश हुआ करती हैं , अपने पाओं को धरती में जमा रखना
पावों के नीचे से छीन ले जमीं दुनिया , इससे पहले बचा के कुछ आसमां रखन...

कहीं कुतर न दें वो पंख फरफराए तो , अपने अरमानों को दिल में दबा रखना
छिन न लें कहीं वो खुश होने की वजह , अपने आखों में ही सपनों का पता रखना...

मिले न प्यार जमाने का कोई बात नहीं , अपना प्यार अपने वास्ते बचा रखना
न होने पाए कभी विरान ये दिल की दुनिया , हर कोने में जला के शमां  रखन...

2 comments:

pooja said...

excellently depicted

Unknown said...

excellent poem
its a real truth about life

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